tag:blogger.com,1999:blog-38427784007415131302024-03-13T20:54:05.710-07:00और क्या?manish joshihttp://www.blogger.com/profile/15204678102509498042noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-3842778400741513130.post-71803747479675233042019-09-15T00:25:00.001-07:002019-09-15T00:48:17.077-07:00short story<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2 style="text-align: left;">
कहानी</h2>
<h3 style="text-align: left;">
दोस्तों पहली कोशिश है शॉर्ट स्टोरी की दुनिया में कदम रखने की। आपका फीडबैक मेरा मार्गर्शन करेगा...</h3>
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बर्थडे</h3>
<h3 style="text-align: left;">
<br /><span style="font-size: large;">दि</span>संबर की सुबह, ठंड का चरम ऐसा कि रजाई ना छूटे... लेकिन आज मितेश न सिर्फ जल्दी उठ गया था बल्कि बहुत खुश भी था। उठते से ही सबसे पहले मोबाइल देखा... कुछ मैसेज इनबॉक्स में थे जिन्हें पढ़ते-पढ़ते वह मुस्कुरा रहा था। बेताबी इतनी थी कि लग रहा था किसी खास मैसेज की तलाश थी उसे। उसका बर्थडे जो था आज। वह उठा, तैयार हुआ और घर वालों ने उसका बर्थडे उसी तरह मनाया जैसे हर साल परंपरा चली आ रही थी। जैसा कि आम भारतीय घरों में होता है... अपनी पसंद की मिठाई, पूड़ी-सब्जी, पुलाव, पकौड़े और वो सबकुछ जो मां अपने लाडले के लिए उसके बचपन से बनाती आ रही है। इतना सब होने के बावजूद वह कुछ खोया-खोया सा था। शायद वह किसी इंतजार में था। आज उसने ऑफिस से छुट्टी भी ले ली थी। <br />दोपहर के करीब तीन बज रहे थे, मितेश घर में बिस्तर में लेटा आराम कर रहा था कि अचानक से मोबाइल की रिंग बजी। उसने डिस्प्ले स्क्रीन पर कॉलर का नाम देखा और उसका चेहरा खिल उठा, नींद तो अचानक से गायब ही हो गई। फोन उसकी नई दोस्त परी का था। हलो... हां बोल रहा हूं.... थैंक्स, थैंक्स अलॉट... पार्टी... हां...हां बोलो कब, कहां चलना है... अच्छा। कब फ्री हो जाओगी ऑफिस से, ...शाम को 6 बजे.... ठीक है मैं आता हूं, हां वहीं पिज्जा शॉप के सामने। इतना बोलकर उसने फोन रख दिया। वह शाम होने का इंतजार करने लगा। घर पर कहा कि ऑफिस के दोस्तों को पार्टी देनी है, खाना बाहर ही खाएगा। शाम के 4 बज चुके थे, मितेश बार-बार घड़ी देख रहा था। उस जहां जाना था वहां घर से पहुंचने में 15-20 मिनट ही लगते हैं। उससे मानो वक्त कट ही नहीं रहा था। जैसे-तैसे 5 बजे तक खुद को रोके था। पांच बजते ही वह घर से निकल पड़ा। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या कर रहा है, दिमाग में तरह-तरह के ख्याल लिए वह चला जा रहा था। करीब पंद्रह मिनट में वह टाटा पिज्जा शॉप के सामने पहुंच गया था। परी के आने में वक्त बहुत था, कभी वह खुद का चेहरा कांच में देखता, कभी बाल संवारता। जैसे-जैसे घड़ी 6 बजने के करीब पहुंच रही थी उसके दिल की धड़कन भी बढ़ती जा रही थी। गला सूखने लगा था और माथे पर पसीना भी आ गया था, शाम घिरने लगी थी और फिजा में ठंडक भी घुलने लगी थी, इसके बावजूद...। खैर 6 बज चुके थे और उसकी निगाहें सड़क के उस छोर पर जा टिकीं जहां से परी आने वाली थी। वक्त बढ़ते जा रहा था और उसके साथ-साथ परी का इंतजार भी। 6.5, 6.10, 6.15, 6.20 अब 6.25 होने ही वाले थे कि सफेद स्कूटी पर मरून कलर का स्वेटर पहने परी सामने से आती दिखाई दी। परी को मितेश तक पहुंचने में कुछ सेकंड्स ही लगे होंगे लेकिन यह दृश्य मितेश की जिंदगी में हमेशा के लिए कैद हो गया। <br />मितेश परी की ओर एकटक देख रहा था, परी ने स्कूटी स्टैंड पर लगाई और मितेश से हाथ मिलाकर उसे बर्थडे विश किया। परी के ठंडे हाथ का स्पर्श से मितेश हकीकत की दुनिया में लौट आया। ओह.. थैक्स यार। परी बोली- सॉरी यार मैं थोड़ा लेट हो गई। मैं निकल ही रही थी कि सर ने एक असाइनमेंट समझाने के लिए रोक लिया। मैंने तुम्हारे लिए कोई गिफ्ट भी नहीं लिया था तो पहले ग्रीटिंग कार्ड शॉप पर गई थी। ये देखो, तुम्हारे लिए... मुझे यलो रंग बहुत पसंद है... असल में मेरी मम्मी का फेवरेट कलर था। और यह पेन... एक जर्नलिस्ट के लिए इससे अच्छा गिफ्ट और क्या हो सकता है... हैना...। <br />ओह हां बिल्कुल, लेकिन मेरे लिए तुम्हारा इस तरह विश करना ही काफी है, सबसे खास है। मुझे तुम्हारा गिफ्ट पसंद आया। चलो... पार्टी कहां लेना चाहती हो बताओ... मैं तुम्हें वहां ले चलता हूं। पार्टी... हां वो तो मैं तुमसे लूंगी ही लेकिन अभी नहीं, फिर कभी -परी ने कहा। मितेश ने पूछा- क्यों तुम्हीं ने तो कहा था...फिर अब। हां यार पर अभी नहीं चल सकती। लेट हो गई हूं... पापा इंतजार कर रहे होंगे। उनकी तबीयत ठीक नहीं है। मुझे उनकी चिंता लगी रहती है। मैंने सोचा था तुम्हारा बर्थडे स्पेशल मनाएंगे लेकिन...। खैर, सुनाओ कैसा रहा सुबह से अब तक बर्थडे-परी ने पूछा। मितेश बोला- बढ़िया, जैसा हर साल होता है, मम्मी-पापा, भाई, बहन सबकी विश मिली, मम्मी ने मेरी पसंद का खाना बनाया, हमने साथ खाया, अच्छा लगा। सभी दोस्तों के फोन आ गए, कुछ के मैसेज आए। अच्छा, तुम चाहो तो घर चली जाओ, ठंड भी बढ़ रही है और पापा भी घर पर इंतजार कर रहे होंगे... मितेश ने परी से कहा। परी बोली- मैं थोड़ी देर और रुक सकती हूं, यहां से पास ही है घर। तुम्हारा बर्थडे है, थोड़ी देर और बातें करते हैं। ठीक है- मितेश ने कहा।<br />परी ने अचानक बात पलटते हुए कहा- अच्छा मितेश यह बताओ तुम्हारा शादी के बारे में क्या ख्याल है। इस बारे में कुछ सोचा या...। मितेश अचानक से पूछे इस सवाल पर थोड़ा हड़बड़ा गया... बोला-हां... अभी तक तो कुछ सोचा नहीं, पहले तो करियर पर ही फोकस कर रहा हूं। अब धीरे-धीर मीडिया फील्ड में सैटल हो रहा हूं, जल्दी ही शादी के बारे में भी सोचेंगे। कैसी लड़की चाहिए तुम्हें... परी ने दूसरा और ज्यादा कठिन सवाल दागा। शायद मितेश इस तरह की सिचुएशन के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था। खैर... संभलते हुए उसने कहा- लड़की सुंदर हो, मां का ख्याल रख सके...। अच्छा- ओके, अगैन विश यू वैरी हैप्पी बर्थडे। अब मैं चलती हूं, पापा को दवाई भी देनी है। मितेश कुछ समझ पाता इससे पहले परी ने संवाद को विराम दिया और स्कूटी स्टार्ट कर के चली गई। मितेश अवॉक सा रह गया और कुछ मिनट वहीं खड़ा रहा और सोचने लगा कि इन सवालों का क्या मतलब था और जवाब पूरा होने के पहले अचानक यूं चले जाने के मायने क्या हैं। इस बर्थडे की सुबह जितनी सुकूनभरी और उत्साह से भर देने वाली थी, रात इसकी ठीक उलट और बेचैनी भरी थी। <br />मितेश के जन्मदिन की वो शाम उसके पूरे जीवन के लिए एक और अधूरी कहानी छोड़ गई थी। कुछ समय बाद परी अपने भाई के यहां उसके पापा को लेकर मुंबई चली गई। लंबे समय तक मितेश और परी ने आपस में कोई बात नही की। इस बीच मितेश ने कुछ हल्के-फुल्के गुदगुदाने वाले मैसेज परी को किए लेकिन परी ने रिप्लाई नहीं किया। कुछ समय बाद एक कॉमन फ्रैंड ने मितेश से कहा कि परी की शादी तय हो गई है, वह अब तुमसे कोई बात नहीं करना चाहती। अब उसे न तो मैसेज करना न फोन। मितेश ने उस कॉमन फ्रैंड को कहा- मेरी तरफ से उसे अच्छी लाइफ के लिए विश कर देना, मैं कभी उसे न फोन करूंगा, न मैसेज। </h3>
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manish joshihttp://www.blogger.com/profile/15204678102509498042noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3842778400741513130.post-36172119800758817272018-04-24T14:21:00.000-07:002018-04-24T14:21:01.429-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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यो कईं हुओ म्हारा इंदौर के</h2>
<br />
म्हारो इंदौर बदली गयो है। यां सड़कना तो चौड़ी हुई गई है न लोग ना का दिल न व्यवहार ओछा हुई ग्या है। रात के लोगना के सड़क पे निकलना में डर लगे। छोरी ना तो ठीक छोरा ना खे भी रात में निकलनों खतरा से खाली नी रियो. पेला लोग ना इंदौर यो देखने आता था कि यां का लोग रातभर राजवाड़ा न सराफा में कसे घूमता रे। लोगना के आश्चर्य लगतो कि यां राजवाड़ा का सामने अन्ना भैया की पान की दुकान पे तो शटर ही नी थो, वा दुकान तो रातभर खुलीज रेती। इंदौर में कोई राते भूखो नीं रई सकतो थो, रात के दो बजे भी भूख लगी जाए तो तम राजबाड़ा न सराफा चलिया जाओ, कईं न कई न कम से कम पोहा तो खाने के मिलिज जाता था। पन जद से रात खे बाजार न खासतौर पर राजवाड़ो बंद करवायो हो म्हारा इंदौर में क्राइम खूब बढ़ी गयो है। पेला रात के लोग परिवार का साथे घूमता था तो उनके डर नीं रेतो थो, अबे तो असो लगे कि रात खे गुंडा, मवाली न नशेड़ीज घूमे। जद देखो दो चार दन में खबर अई जाए कि आधी रात के बदमाशना ने अईं उत्पात मचायो, मारपीट करी दी, नशे में गोली चलईदी, न छेड़छाड़ करी दी. म्हारे तो लगे कि पुलिस तो सोतीज रे,,,गुंडाना अपनो काम करता रे न पुलिस उनके पकड़ने का बजाय बिना हेलमेट वाला ना का चालान बनाना मेंज लगी रे।</div>
manish joshihttp://www.blogger.com/profile/15204678102509498042noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3842778400741513130.post-64164177591317935422009-07-25T23:11:00.000-07:002009-07-25T23:12:33.381-07:00bona ka pela sochi lo<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4Y7Ki0ai-3td-oPz5iTqty9XJrWzAwJD_oMsuO3okgd6l_0a8_A5eGshct_BgitIiJ5U5mnjTfiv2-GsJq2FqfYUzjSa1IN4PFPVklY03Nk-ofbUiim_OpFahQHQ5sqhITEjAzj2yRzM/s1600-h/IT2618-1.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 186px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4Y7Ki0ai-3td-oPz5iTqty9XJrWzAwJD_oMsuO3okgd6l_0a8_A5eGshct_BgitIiJ5U5mnjTfiv2-GsJq2FqfYUzjSa1IN4PFPVklY03Nk-ofbUiim_OpFahQHQ5sqhITEjAzj2yRzM/s320/IT2618-1.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5362647752007760114" border="0" /></a>manish joshihttp://www.blogger.com/profile/15204678102509498042noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3842778400741513130.post-34057350859838274682009-07-18T23:04:00.000-07:002009-07-18T23:06:18.314-07:00rakhi ko byao<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgy1yTg2MC9j4bJEGfrbNJYnsASUZ21UZtp-BkFNjwa2baKeVm-68e2LvaStT9MpdS-sHuQOITnBCD6FTLe8wDh54ORDib0tj8s72t-uNH407EkAuCe-uTqOZRXyZ1EckGbApIBgzMTEvY/s1600-h/manish1.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 297px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgy1yTg2MC9j4bJEGfrbNJYnsASUZ21UZtp-BkFNjwa2baKeVm-68e2LvaStT9MpdS-sHuQOITnBCD6FTLe8wDh54ORDib0tj8s72t-uNH407EkAuCe-uTqOZRXyZ1EckGbApIBgzMTEvY/s320/manish1.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5360048403217972834" border="0" /></a>manish joshihttp://www.blogger.com/profile/15204678102509498042noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3842778400741513130.post-18286871522577549022009-07-12T21:52:00.000-07:002009-07-19T08:17:24.031-07:00sola somwar kariya mama ne na bhanej ko byao hui gayo<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTqPeTEq7HNwjAji0vJ-jG9ZKrHDQ9iJKvJ0vmwlf3ps93bhTf_WHm9StfS5eXpo9OVbbeIOmA9oF8iVLCxvLGKhN585wizhwANBxUroxPEd7hcZwWIYIFrWoP1_u9lcGD1A1dOSvd77k/s1600-h/IT1218-1.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5357803521537546706" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 300px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTqPeTEq7HNwjAji0vJ-jG9ZKrHDQ9iJKvJ0vmwlf3ps93bhTf_WHm9StfS5eXpo9OVbbeIOmA9oF8iVLCxvLGKhN585wizhwANBxUroxPEd7hcZwWIYIFrWoP1_u9lcGD1A1dOSvd77k/s320/IT1218-1.jpg" border="0" /></a><br /><div></div>manish joshihttp://www.blogger.com/profile/15204678102509498042noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3842778400741513130.post-76484735807197215282007-10-01T23:52:00.000-07:002007-10-02T00:25:14.365-07:00चार आने वाला ट्यूबआजादी के ६० साल मनाने वाले देश के शहर की एक बस्ती में ऐसा भी होता है। कुछ दिनों पहले मैं एक डॉक्टर के पास बैठा था। हमलोग बातें कर रहे थे। इतने में एक महिला आई और कहने लगी डॉकसाब मेरी आंखों में खुजली चल रही है। उन्होंने कहा कब से। वह बोली पिछले तीन-चार दिनों से थोड़ा धुंधला दिख रहा है औऱ आंख में कभी-कभी खुजली चलती है। उन्होंने कहा इतने दिन बाद क्यों बता रही हो पहले ही आ जाती, किसी को बताया था। कहने लगी पहले तो खुद ने ही आंख में ट्यूब डाल लिया था,उससे फर्क नहीं पड़ा तो आपके पास आ गई। डॉक्टर ने पूछा कौनसा ट्यूब डाला था। कहने लगी वो चार आने वाला। उन्होंने पूछा चार आने वाला कौनसा ट्यूब आता है, कहने लगी एक रुपए में चार आते हैं इसलिए उसे चार आने वाला कहते हैं। मेडिकल वाले से मंगवा लिया था। हमारे मोहल्ले में तो जब भी किसी को आंख में तकलीफ होती है ये चार आने वाला ट्यूब स्टोर से ले आते हैं। यह स्थिति है देश की तरक्की की। अच्छे खासे इंदौर शहर में इतनी अशिक्षा है पता नहीं था। जहां चार आने में कुछ नहीं मिलता वहां कुदरत के सबसे बड़ी नेमत आंखों की सुरक्षा के लिए दवाई मिलती है। वह भी डॉक्टर के बगैर पूछे। गांधीजी की जयंती मनाई जा रही है. उम्मीद है कुछ दस-पंद्रह साल बाद जब गांधी जयंती मनाएंगे तब कोई महिला चार आने वाला ट्यूब आंख में नहीं डालेगी।manish joshihttp://www.blogger.com/profile/15204678102509498042noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3842778400741513130.post-64186209781215336472007-09-24T23:27:00.000-07:002007-09-24T23:51:47.451-07:00क्रिकेट की जीत हुईफर्राटा क्रिकेट के पहले विश्वकप में भारत ने शानदार प्रदर्शन करते हुए खिताब अपने नाम कर लिया। पारंपरिक और कड़े प्रतिद्वंदी भारत और पाक आमने सामने थे। क्रिकेट में इन दोनों टीमों की भिड़ंत क्रिकेट प्रेमियों के ड्रीम की तरह है। जो रोमांच और दीवानगी इनके मैचों में होती है वो कहीं और देखने को नहीं मिलती। हर टूर्नामेंट के आयोजकों का सपना होता है कि फाइनल भारत और पाक के बीच हो। जब बात विश्वकप फाइनल की हो तो जो गर्मी २४ तारीख को महसूस हुई वह अनअपेक्शित नहीं थी।न सिर्फ भारत-पाकिस्तान बल्कि दुनिया के हर क्रिकेट खेले जाने वाले देश में रोमांच अपने चरम पर था। जो जुनून और खेल दोनों टीमों ने दिखाया उससे हर क्रिकेट का शौकीन रोमांचित हो गया। मैच के बाद शाहिद अफरीदी और धोनी ने सही कहा कि हार-जीत इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी जितना अच्छा खेल खेलना। और इसमें कोई शक नहीं कि कल क्रिकेट अच्छा खेला गया। कई तरह के विवादों और विश्वकप २००७ के बाद से क्रिकेट में निरसता आ गई थी। इस टूर्नामेंट ने कम से कम नई जान तो फूंकी। कल भले ही भारत जीता हो लेकिन वास्तव में जीत तो क्रिकेट की ही हुई है।manish joshihttp://www.blogger.com/profile/15204678102509498042noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3842778400741513130.post-46084559997692169522007-09-21T23:06:00.000-07:002007-09-21T23:42:21.382-07:00जरा ध्यान देंपूर्व चीफ जस्टीस वाय के सबरवाल के बारे में आटीर्कल लिखने के कारण मिड-डे के तीन पत्रकारों को चार माह की जेल की सजा सुना दी गई। कोर्ट की अवमानना के तहत इन्हें सजा सुनाई गई है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट से इन्हें राहत मिली है लेकिन फिर भी स्थिति चिंता जनक है। अब मय सबूतों के भी किसी के खिलाफ लिखने में सतर्कता बरतनी होगी। भारत में मीडिया पर लगाम कसने के लिए लाए जा रहे बिल पर चर्चा जारी है। इसपर बहस हो रही है कि इससे अभिव्यिक्त की आजादी का अधिकार तो कहीं प्रभावित नहीं होगा। हाल ही में इंडिया लाइव चैनल के फर्जी स्टिंग ऑपरेशन के कारण मामला और गरमा गया है और इससे उन लोगों को अपनी बात रखने में वजन मिल गया है जो मीडिया पर लगाम कसना चाहते हैं, खासकर नेता बिरादरी। इलेक्ट्रानिक मीडिया के आने से कई गंभीर अपराधों और भ्रष्टाचारों का खुलासा हुआ है। कई नेता और प्रभुत्व रखने वाले लोग बेनकाब हुए हैं। इसके कारण इन लोगों पर काफी दबाव था। अभी इन सभी लोगों को बहाना मिल गया है मीडिया को काबू में रखने का। अगर गौर करें तो कहीं न कहीं मीडिया खुद भी इस स्थिति के लिए दोषी है।<br />अगर गौर करें तो कहीं न कहीं मीडिया खुद भी इस स्थिति के लिए दोषी है। आपसी प्रतिस्पर्धा और टीआरपी के चक्कर में कुछ चैनल गलत हथकंडे भी अपनाने लगे हैं। इसमें सेक्स और वाइलेंस, झूठे स्टिंग ऑपरेशन और क्राइम के नाटकीय रूपांतरण वाले कार्यक्रमों की भरमार प्रमुख हैं। मीडिया को अपनी सीमा तो नहीं लेकिन गरीमा जरूर तय करना होगी। जनता जो पसंद करती है अगर वही पब्लिश किया जाए या दिखाया जाए तो शायद मीडियाकर्मी खुद अपने घर में अपना चैनल या अखबार पढ़ नहीं सकेंगें। व्यवसायिकता के साथ अगर हम सामाजिक सरोकार का ध्यान रखें तो शायद हम लोगों में अपने लिए विश्वास फिर से कायम करने में कामयाब हो सकते हैं। यह बात अलग है कि व्यवसायिक हितों को भी महत्व देना होता है लेकिन इससे लोगों और खासकर मीडिया की विश्वसनीयता पर अंगुली न उठे इसका खयाल रखना जरूरी है। आपका क्या कहना है जरूर बताएं।manish joshihttp://www.blogger.com/profile/15204678102509498042noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3842778400741513130.post-57682259534017430202007-09-19T23:14:00.001-07:002007-09-19T23:19:03.167-07:00आज मौसम बेइमान हैआज इंदौर में माहौल खुशनुमा है। बादल घिरे हुए हैं और बारिश की संभावना है। हालांकि पिछले दो दिनों से बारिश हो रही है लेकिन आज ज्यादा घनघोर बारिश होने की संभावना है। दिन के साढ़े ग्यारह बजे ही ऐसा लग रहा है जैसे शाम के साढ़े सात बज चुके हैं। ठंडी-ठंडी हवाएं चल रही हैं और लोग चेहरे पर मुस्कान लेकर गाड़ी चला रहे हैं। इससे लगता है कि आज शहर में काइम कम होगा। गुंडे किस्म के लोग मौसम की खुमारी में शराब ज्यादा पी लेंगे। इससे यह होगा कि वे होश में नहीं रहेंगे और काइम करने की सूरत में नहीं रहेंगे। आज का दिन कॉलेज जाने वाली लड़कियों के लिए मुसीबत का होगा। मौसम आशिकाना है और लड़के इस फिराक में होंगे कि जैसे ही कोई खूबसूरत लड़की मिले उसे छेड़ा जाए, कम से कम आई टानिक तो ले ही लिया जाए। लड़कियां भी आज गाड़ी लहराते हुए और कुछ गीत गुनगुनाते हुए दिख सकती हैं। भाई मौसम का कसूर है, हर व्यिक्त को सुरूर है। हां आज सड़क किनारे शनी महाराज के तेल से भजिए बनाने वालों की भी चेत जाएगी। लोगों का हुजूम इन ठेलों पर देखा जा सकेगा।<br />नमस्कार आज बस इतना ही।manish joshihttp://www.blogger.com/profile/15204678102509498042noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3842778400741513130.post-70039440721052616082007-09-19T22:32:00.000-07:002007-09-19T22:41:04.970-07:00rishtaवो एक कच्ची मिट्टी-सा रिश्ता और मैं एक नौसिखिया कुम्हार,कई बार चढ़ाया उसे चक्र पर,कई बार बिगड़ा मेरे हाथों से,पर हिम्मत नहीं हारीटेढ़ी-मेढ़ी शक्लें देता रहाइस उम्मीद में कि किसी दिन सीख जाऊँगा मैं भी रिश्तों को गढ़नासुंदर आकार देनावो एक कच्ची मिट्टी-सा रिश्ताअलगाव की तपिश में पकाया कभीकभी रंगा जीवन के नए रंगों सेसपनों की चित्रकारी की उस पर तो कभी भरा नई उमंगों सेकि जब भी कोई जीवन की कड़ी धूप में चलतेबैठ जाए थककरतो दे सकूँ कुछ मीठी-सी ठंडक लेकिन वो एक कच्ची मिट्टी-सा रिश्ताआखिर था तो कच्ची मिट्टी से बना और मैं एक नौसिखिया कुम्हार...<br /><br /><br />शैफाली शर्मा की यह कविता कैसी है कमेंट करें।manish joshihttp://www.blogger.com/profile/15204678102509498042noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3842778400741513130.post-74471402302747224072007-09-19T07:54:00.000-07:002007-09-19T08:05:25.006-07:00जो दिल में है कह डालोचलो कुछ कर दिखाएँस्वागत है आपका मेरे ब्लाग पर. अब आपके दिल में जो कुछ भी हो कह डालिये.manish joshihttp://www.blogger.com/profile/15204678102509498042noreply@blogger.com1