rishta

वो एक कच्ची मिट्टी-सा रिश्ता और मैं एक नौसिखिया कुम्हार,कई बार चढ़ाया उसे चक्र पर,कई बार बिगड़ा मेरे हाथों से,पर हिम्मत नहीं हारीटेढ़ी-मेढ़ी शक्लें देता रहाइस उम्मीद में कि किसी दिन सीख जाऊँगा मैं भी रिश्तों को गढ़नासुंदर आकार देनावो एक कच्ची मिट्टी-सा रिश्ताअलगाव की तपिश में पकाया कभीकभी रंगा जीवन के नए रंगों सेसपनों की चित्रकारी की उस पर तो कभी भरा नई उमंगों सेकि जब भी कोई जीवन की कड़ी धूप में चलतेबैठ जाए थककरतो दे सकूँ कुछ मीठी-सी ठंडक लेकिन वो एक कच्ची मिट्टी-सा रिश्ताआखिर था तो कच्ची मिट्टी से बना और मैं एक नौसिखिया कुम्हार...


शैफाली शर्मा की यह कविता कैसी है कमेंट करें।

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